खिड़की रोशनदान नदारद, (सरसी छंद )
सरसी छंद
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खिड़की रोशनदान नदारद, शुभग नहीं प्रतिमान।
मिले शांति सुख वैभव कैसे ,रूठा जब दिनमान ।।
नए दौर घर कहाँ बन रहे , लाखों खड़े मकान ।
रहे बगल में कौन पड़ोसी, कहाँ जान-पहचान।।
रमेश शर्मा.
सरसी छंद
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खिड़की रोशनदान नदारद, शुभग नहीं प्रतिमान।
मिले शांति सुख वैभव कैसे ,रूठा जब दिनमान ।।
नए दौर घर कहाँ बन रहे , लाखों खड़े मकान ।
रहे बगल में कौन पड़ोसी, कहाँ जान-पहचान।।
रमेश शर्मा.