*खिचड़ी कैसे बने ? ( हास्य व्यंग्य )*
खिचड़ी कैसे बने ? ( हास्य व्यंग्य )
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नई बहू में गजब का राजनीतिक चातुर्य देखने को मिला । आते के साथ ही सास के खिलाफ मोर्चा खोल दिया । रोज सुबह घर में खाने की मेज पर प्रेस-कॉन्फ्रेंस करके सास की कमियों को इंगित करती थी और कहती थी ” मेरा काम केवल इसलिए पूरा नहीं हो पा रहा क्योंकि सास अपना कर्तव्य नहीं निभा पा रही हैं । ”
अगर खिचड़ी सही नहीं बन पा रही है तो बहू उसका दोष सास को देती है । कहती हैं “दालें खरीद कर लाने का काम सास ने अपने जिम्में लिया हुआ है । जब तक अच्छी क्वालिटी की दाल नहीं आएगी ,कुछ भी नहीं बन पाएगा ।”
कई सप्ताह तक यह नौटंकी चलती रही । घर में दालों का पुराना स्टॉक जब समाप्त हो गया और सास नई दालें बहू के कहे के अनुसार बाजार से खरीद कर लाई , तब बहू ने दाल का प्रकरण एक तरफ को उठा कर रख दिया और चावल का विषय शुरू कर दिया ।
अब रोजाना खाने की मेज पर चावल की चर्चा होने लगी कि चावल की क्वालिटी अच्छी नहीं है । चावल कई महीने का घर पर रखा हुआ था । हमेशा से यही चावल प्रयोग में आता था और खिचड़ी बहुत बढ़िया बनती थी । लेकिन अब बहू ने जोरदार तरीके से कहा “सास जी अपनी मनमानी से जैसा चाहे चावल खरीद कर ले आती हैं और भुगतना हमें पड़ता है । जब चावल ही खराब हैं ,तो खिचड़ी भला कैसे अच्छी बन सकती है ? ”
इसका परिणाम यह निकला कि बहू ने खिचड़ी जैसी भी बनाई ,सबके पास सिवाय सिर झुका कर खाने के और कोई विकल्प नहीं था । बहू से कोई शिकायत नहीं कर सकता था । सबकी शिकायत करने से पहले ही बहू शिकायत का पुलिंदा लेकर बैठ जाती थी और प्रेस-कॉन्फ्रेंस की मुद्रा में सास पर आरोप लगाती थी । सास को मालूम था कि बहू की निगाह अलमारी और अलमारी की चाबी पर है । रुपयों की थैली बहू के हाथ में आ जाए ,तब वह संतुष्ट हो सकती है । लेकिन उस में दिक्कत यह रहती कि सास को अगर दस रुपए का पान भी खरीदना होता ,तब बहू से पैसे मांगने पड़ते ।
जैसे-तैसे चावल का पुराना स्टॉक जब खत्म हुआ ,तब सास ने नए चावल बहू की पसंद के खरीदे और घर में उसकी थैलिया आकर रख गई । चावल आते ही चावल का प्रकरण छूमंतर हो गया ।
अगले दिन जब खाने की मेज पर सब लोग बैठे ,तब बहू ने कहा ” अच्छी खिचड़ी केवल दाल और चावल से नहीं बनती । उसके लिए एक अच्छा प्रेशर-कुकर होना चाहिए ,जो अभी तक हमें सास ने उपलब्ध नहीं कराया है । हमारी हाथ जोड़कर उन से विनती है कि वह घर के अच्छे भोजन के लिए एक बढ़िया सा प्रेशर-कुकर खरीद कर हमको उपलब्ध कराएं । इस कार्य के लिए अगर हमें उनके पैर छूना पड़े तब भी हम तैयार हैं । ”
सास ने बहू की मक्कारी को समझ लिया था । उसे मालूम था कि प्रेशर-कुकर उपलब्ध कराने के बाद फिर थाली ,कटोरी और चम्मच पर भी प्रश्न चिन्ह लगाया जाएगा । उसके बाद खाने की मेज अच्छी नहीं है ,यह कहा जाएगा । ऐसी हालत में सास ने बहू को रोजाना सुबह-शाम खाने की मेज पर भाषण करने की स्वतंत्रता दे दी । कहा ” ठीक है ! तुम्हें जो भाषण देना है ,दो । हम अपने ढंग से जो काम कर रहे थे ,वही करेंगे ।”
बहू ने आरोप लगाया ” देखिए ! मैं तो यही कह रही थी । सास नहीं चाहतीं कि घर में अच्छा खाना ,अच्छे बर्तनों में ,अच्छी मेज पर उपलब्ध हो सके ।”
भुगतना बेचारे घर के सदस्यों को पड़ रहा है । न खाना अच्छा मिल पा रहा है ,न खाने की मेज पर खाना परोस कर आ रहा है। जब बैठो ,तब बहू का भाषण सुनने को मिलता है । वह सोचते हैं ” अद्भुत बहू मिली है ! खिचड़ी बनाने से कोई मतलब नहीं, थाली में परोस कर लाने से कोई मतलब नहीं ,बस भाषण देना आता है । ”
पता नहीं कितने साल तक यह सास से बहू का झगड़ा चलेगा । जब तक बहू की प्रेस-कॉन्फ्रेंस चलती रहेगी ,खिचड़ी तो बनने से रही !
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451