खाली कुर्सी देखकर
दोहा
खाली कुर्सी देखकर, भागा भाषणवीर।
जैसे खींचे धनुष से, निकल गया हो तीर।।
भीड़ जुटाने के लिए, सजा दिया पंडाल।
भीड़ नहीं जब जुट सकी, नेता जी बेहाल।।
भीड़भाड़ के फेर में, लगे चोर को मोर।
पैसा खर्चा ओर ने, टिकट ले गया ओर।।
पतली हालत जान कर, नेता जी बेचैन।
छोटी सी धरती लगे, गई नींद बिन रैन।।
जुटी नहीं जब भीड़ तो, खूब पिटी है भद्द।
खबरें हैं अखबार में, रैली कर दी रद्द।।
डूबी नैया देखकर, दुखी हुआ कप्तान।
पानी पानी हो गया, आया उपाय ध्यान।।
सिल्ला सब कुछ देखता, करे सभी पर गौर।
कलमबद्ध सब कर रहा, किए बिना ही शोर।।
-विनोद सिल्ला