खामोशी भी बात करती है
खामोश मंज़र
खूबसूरत इसक़दर,
ढलते सूरज का पैगाम
सुकून ये सुहानी शाम,,
उतर जाना गहराई मे ऐसे
निकलो जब ,बिखरो किरणों के जैसे,
परिंदे लौट रहे घर को
हर कोई मुंतज़िर है दर को,
कुछ देर ठहरना है सुस्ताना है
कल फ़िर ताज़ा होकर आना है
कायनात यूं हैरान करती है
ख़ामोशी भी कितनी बात करती है,,
नम्रता सरन “सोना”