फुरसत
और तब जब शब्द चुनने लग जाएं खामोशियां
और पसरने लगे सन्नाटें
और तब जब सफेद मखमली चादर में भी न मन को सुकून आए
ठंडी हवा के झोंके भी जब उस आग को न बुझा पाएं
और तब जब गहरी झील का संगीत शोर बन जाए
तब ढूंढना आस पास कुछ अपनों की आवाजों को
और ढूंढना कुछ सपनों के पूरी होने की आस में टूटती समय की सांसों को
और तब ढूंढना
उस
बूढ़े होते समय के आसमानी चेहरे पे छाई हुई काली घटाओं को
और बरसना जी भर के तब क्योंकि फिर न मिले तुझे फुरसत शायद