खाकी ही भरतार
खाकी वर्दी जब चले, अपराधी के साथ।
बेचारी जनता मरे, खुद अपने ही हाथ।।
चार दिन में पा न सकी, अपराधी के तार।
खाकी के संरक्षण से, अगवा होती नार।।
कैसे अगवा हो गई, बच्ची वो अनजान।
अब एटा कैसे करे, खाकी पर अभिमान।।
अपराधी से प्यार है, सज्जन से तकरार।
हमको तो ऐसा लगे, खाकी ही भरतार।।
जटाशंकर”जटा”
२३-०८-२०२०