ख़्वाहिश पर लिखे अशआर
बेसुध सी ख़्वाहिशों का कैसा खुमार है ।
तू सामने है फिर भी तेरा इंतज़ार है ।।
ख़्वाहिश कोई अधूरी बाकी हो ज़िंदगी की ।
उम्र-ए-तमाम पर जैसे तमन्ना हो ज़िंदगी की ।।
टूटे ख़्वाबों की ज़मीन पर अक्सर ।
ख़्वाहिशों के मज़ार होते हैं ।।
मेरी आंखों का कोई ख़्वाब सा ।
मेरी ख़्वाहिशों का कोई जवाब सा ।।
वो मिला है मुझको इस तरह ।
मेरी नेकियों का कोई सवाब सा ।।
मेरी ख़्वाहिश में बे’तहाशा हो ।
हम तुम्हें भूल कैसे सकते हैं ।।
ख़्वाहिश-ए-एतमाद की ज़िद में ।
दिल का कोई यकीन टूटेगा ।।
ख़्वाबों की तेरी दुनिया हक़ीक़त से दूर है ।
ला’हासिल ख़्वाहिशों की तमन्ना फ़िज़ूल है ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद