अच्छे ख़्वाब
आज ख़्वाबों की बात करते हैं। ख़्वाब हम सब देखते हैं कभी अच्छे देखते हैं कभी बुरे देखते हैं कभी हक़ीक़त से मिलते जुलते देखते हैं। कभी हक़ीकत से बिल्कुल परे देखते हैं। कभी अपनों के देखते हैं कभी ग़ैरों के देखते हैं। कभी ग़मों के देखते हैं कभी ख़ुशियों के देखते हैं। कुछ ख़्वाब हमें याद रह जाते हैं कुछ हम भूल जाते हैं। दर असल हम जितने भी ख़्वाब देखते हैं ज़्यादातर ख़्वाबों को हम भूल ही जाते हैं। हमें सिर्फ़ वही ख़्वाब याद रहते हैं जिनको देखते वक्त आँख खुल जाती है और उन्हें हम अपने मन में दोहरा लेते हैं। अगर हम उन्हें मन में दोहराएँगे नहीं तो हम उन्हें भी थोड़ी देर में भूल जाएँगे। जिन ख़्वाबों को देखते हुए हमारी आँख नही खुलती वो ख़्वाब हमें कभी याद नही रहते। जहां तक मेरा तजुर्बा है ख़्वाब का आना बेशक हमारी ज़िंदगी से ताल्लुक़ रखता है। मैंने किसी किताब में पढ़ा था कि ख़्वाब हमारी सोच का आईना होते हैं जो कि बिल्कुल दुरुस्त है। हमें कैसे ख़्वाब ज़्यादा आते हैं ? यह हमारी दिन भर की सोच पर निर्भर करता है। ख़ैर मैं फ़िलहाल ख़्वाब की सायकॉलजी पर बात नहीं करूँगा मैटर बहुत लम्बा हो जाएगा और जो मैं बताना चाहता हूँ उससे भटक जाऊँगा । बतौर ए ख़ास मैं बात करना चाहता हूँ अच्छे और बुरे ख़्वाब के बारे में। अच्छा ख़्वाब क्या है और बुरा ख़्वाब क्या है? अमूमन हम लोग अच्छे ख़्वाब देखने पसंद करते हैं मतलब ऐसे ख़्वाब जिनमें हने कुछ अच्छा या फ़ायदे का होते हुए दिखायी दे। बुरे या डरावने ख़्वाब देखने से सभी बचना चाहते हैं। लेकिन एक बात पर गौर किया जाए तो दर असल जो ख़्वाब अच्छे होते हैं वो बुरे होते हैं और जो बुरे होते हैं वो अच्छे होते हैं। मिसाल के तौर पे जब हम कोई ऐसा ख़्वाब देख लेते हैं जिसमें हमारे साथ कुछ बहुत अच्छा घटित होता है। और फिर हम जाग जाते हैं तो हमें बुरा लगता ओह! यह ख़्वाब था काश यह सच होता हम अफ़सोस करते हैं। लेकिन जब हम बहुत बुरी घटना ऐक्सिडेंट या डरावने ख़्वाब में खुद के साथ या अपने नज़दीकी लोगों के साथ बुरा होते हुए देखते हैं और अचानक आँख खुलती है, बड़ा सुकून महसूस करते हैं मन में ख़ुदा/ ईश्वर का शुक्र अदा करते हैं कि यह सिर्फ़ ख़्वाब ही था। अब आप ही बताइए अच्छा ख़्वाब किसे कहेंगे और बुरा ख़्वाब किसे कहेंगे ?
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