ख़्वाब पर लिखे कुछ अशआ’र
हमको इस ज़िन्दगी के हासिल जवाब थे ।
कहीं नींद थी अधूरी कहीं टूटे ख़्वाब थे ।।
ख़्वाब कैसे कोई मुक़म्मल हो ।
टूट जाती है नींद आँखों में ।।
देख लेते हम अपनी आंखों से ।
ज़िंदगी ख़्वाब तो नहीं होती ।।
ऐ ज़िन्दगी तुझे हम जब भी आज़माते हैं ।
हम ख़्वाब की तरह हक़ीक़त में टूट जाते हैं ।।
मेरे हिस्से की नींद दे मुझको ।
अभी आंखों के ख़्वाब बाक़ी हैं ।।
ख़्वाबों की तेरी दुनिया हक़ीक़त से दूर है ।
ला-हासिल ख़्वाहिशों की तमन्ना फ़िज़ूल है ।।
तुम हक़ीक़त में पास आ जाना ।
हम तसव्वुर ख़याल कर लेंगे ।।
नाज़ुक था आंखों से नींद का रिश्ता ।
अपनी पलकों पर ख़्वाब क्या बुनता ।।
नींदे भी ज़रूरी है आंखों को ख़वाब दो ।
ज़िंदगी के सवाल का ख़ुद ही जवाब दो ।।
एक ख़्वाब बन गया वो ।
जो ख़्वाब ज़िंदगी था ।।
डाॅ. फौज़िया नसीम शाद