ख़ुशबू
तन-मन-पल की ख़ुशबू
फैली हैं फ़िज़ाओं में,
झोकों की तो आदत है,
दूर-दूर उड़ा ले जाने की !
सोचता हूँ –
मैं दीवाना तो नही!
अभी भी –
सँभल कर रहता हूँ !
शरारत हो जाए ये खुदा –
मुआफ़ी का हक़दार हूँ !
ग़लती नही है अगर-
अल्हड़ ख़ुशबू की
तारीफ़ छलक जाती है
मेरी नियत के पैमाने से ।
-नरेन्द्र