ख़ाली हाथ
ख़ाली हाथ
अर्चना अपने पचपनवें जन्मदिन पर अकेली बैठी थी , सुबह से फ़ोन तो कई आ गए थे , पर मिलने आने वाला कोई नहीं था , पिछले कई दिनों से उसने किट्टी पार्टीज , ब्रिज ग्रुप , बुक क्लब , यहां तक कि जिम जाना भी छोड़ दिया था , जैसे जीवन के सारे अर्थ खो रहे थे , बस कहीं गहरे ऐसा लगता था , मानो जीवन से हार गए हों , और यह हार मानो विधाता ने अपनी कलम से लिख दी हो , जिसे सही करने की कोशिश करते करते वह थक गई थी , उसके पास बचे थे मात्र आंसू , और एक बेकाबू दिल , जिसकी ऊपर नीची होती भावनाओं से वो परेशान थी।
बीस साल की थी, जब पच्चीस साल के केमिकल इंजीनियर , कुणाल से वह अपनी सहेली के घर पर मिली थी , बस देखते ही प्यार हो गया था , और शादी का फैसला भी कर लिया था , दरसल तब किसी लड़के का पसंद आ जाना प्यार समझ लिया जाता था , और इस प्यार की अगली सीढी शादी ही होती थी। शादी में कोई दिक्क्त नहीं थी , कुणाल इंडियन आयल में नौकरी करता था , उनकी गृहस्थी चल निकली। देखते ही देखते दो बेटियां भी हो गई। अर्चना को बस इतनी शिकायत थी कि जब कुणाल रिग पर जाता है तो वो हफ्तों तक अकेली हो जाती है।
सब ठीक चल रहा था कि एक दिन कुणाल ने कहा , उसे नाइजीरिया में आयल कंपनी के साथ नौकरी मिल गई है , अर्चना ने जब अपॉइंटमेंट लेटर देखा तो दंग रह गई , इतनी तन्खा तो उसने सपने में भी नहीं सोची थी।
“ नाइजीरिया के लिए तुमने कब अप्लाई किया , मुझे बताया भी नहीं। ”
“ अरे मैंने तो यों ही उत्सुकतावश अप्लाई किया था , मुझे क्या पता था कि मुझे मिल जायगी , और तन्खा इतनी बढ़िया होगी। ”
“ तो अब ?”
“ अब जो तुम चाहो , पर मेरे ख्याल से मुझे लेनी चाहिए। हर छ हफ्ते में मैं आ जाया करूंगा , अगर दो साल भी टिक गया तो घर का सारा लोन चुक जायगा. बेटियों को अमेरिकन स्कूल भेज सकेंगे, छुटियों में देश विदेश की सैर करेंगे।
” तो हम तुम्हें कभी विजिट कर सकेंगे ?”
” नहीं, रिग पर वो एलाउड नहीं होगा ।”
शुरू में अमेरिकन स्कूल, बैंक बैलेंस, बड़ा घर, विदेश में छुटियाँ , सब स्वप्न जैसा था। अर्चना ने म्यूजिक, पेंटिंग की न जाने कितनी हॉबी क्लासेज कर डाली , घर में बच्चे अकेले न हो जाएँ , इसलिए वह कभी घर से बाहर कभी कुछ विशेष नहीं कर पाई।
कुणाल के वे दो वर्ष बढ़कर बीस वर्ष हो गए, और वो अपनी नौकरी में आगे बढ़ता रहा। नौकरी न छोड़ने के हमेशा कुछ न कुछ कारण रहे । पहले , बच्चे एक बार अमेरिकन स्कूल में पढ़ने के बाद और किसी स्कूल में नहीं पढ़ सकते , और भारत की तन्खा से आप अमेरिकन स्कूल की फीस नहीं दे सकते। फिर बच्चे यदि उच्च शिक्षा के लिए विदेश जायेंगे तो उनके कैरियर ज्यादा बेहतर होंगे। पहले जया और फिर दो साल बाद जानवी भी चली गई। अर्चना अकेली रह गई तो कुणाल ने सुझाव दिया कि वह मुंबई से पुणे शिफ्ट हो जाये , वहां उसके माँ पापा भी अकेले हैं , और रिटायर होने के बाद कुणाल भी वहीँ आ जायगा। अर्चना को सुझाव अच्छा लगा , उसने वहां एक बहुत बड़ा मकान ले लिया , जिसे उसने दिल खोलकर सजाया , नए दोस्त बनाए, नए शौक पाले, माँ पापा और सहेलियों के साथ देशभर में घूमती रही। जिंदगी खुशहाल थी, शिकायत थी तो बस इतनी की जब कुणाल साथ भी होता तो यह डर लगा रहता कि यह जल्दी ही चला जायगा ।
समय बीतता रहा, जया और जानवी की नौकरियां लग गई, तो एक दिन जानवी का फ़ोन आया कि वह अमेरिका से बोर हो गई है, इसलिए ऑस्ट्रेलिया शिफ्ट हो रही है, अर्चना ने बहुत समझाया कि इससे हम चारों एकदम बिखर जायेंगे, हमारे टाइम जोन इतने अलग होंगे कि हम चारों एकसाथ व्हाट्सप्प कॉल भी नहीं कर सकेंगे। पर कुणाल ने कहा,
“जाने दो, बच्चों पर अपनी मर्ज़ी मत लादो , यह क्या कम है कि वे इस क़ाबिल हैं कि अपने फ़ैसले वे ख़ुद कर सकते हैं ।”
अर्चना ने जानवी से कहा, ” अब तूं पच्चीस की हो गई है, यह उम्र है शादी करके घर बसाने की ।”
जानवी हंस दी, “ शादी भी कर लूँगी, पहले जया की तो कराओ। “
और अर्चना ने जया के लिये लड़का ढूँढने के लिये शादी डाट काम पर अपनी नींदें हराम कर दी , पर जया को तो कोई लड़का पसंद ही नहीं आ रहा था, उसे अपनी ज़िंदगी से क्या चाहिये था शायद उसे ही नहीं पता था, कभी वह बराबरी की बातें करती थी तो कभी उसे अपने से ज़्यादा कमाने वाला पति चाहिये होता था । वह उड़ रही थी उस तूफ़ान में , जो दिशाहीन था और कोई नहीं जानता था यह कब और कहाँ थमेगा । अर्चना नहीं जानती थी , वह अपनी बेटी को क्या राय दे, उन दोनों की दुनिया इतनी अलग हो चुकी थी , इस प्रश्न का उत्तर अर्चना के पास नहीं था कि जया कैसे अपना कैरियर भी बनाये, शादी भी करे , बच्चे भी पाले ।
अर्चना चिंताओं से घिरती जा रही थी, स्थितयां उसके वश में नहीं थी।
फिर पिछले साल माँ पापा भी एक सप्ताह के अंतराल में चल बसे। कोविड के कारण कोई नहीं आ पाया , ज़ूम पर सब हो गया , उसके पास शोक संदेश आते रहे, किसी ने लिखा ,
– वे ज़िंदगी भर साथ साथ रहे, गए भी तो साथ साथ ।
दूसरे ने लिखा, – उनका जीवन संपूर्ण जीवन था , बच्चे, नाती , पोते, पडपोते , सबका सुख देखा ।
फिर किसी ने लिखा , – वे रियल लाइफ़ हीरो थे, सबके दुख सुख में काम आये, वे खुले दिल के सच्चे लोग थे ।
यह संदेश पढ़ने के बाद अर्चना अक्सर सोच में पड़ जाती , क्या उसका जीवन उतना संपन्न है , जितना माँ पापा का था !!!
जानवी और जया ने मिलकर उसे जन्मदिन पर कान के हीरे के बुँदे भेजे हैं, और दुनिया की बेस्ट माँ घोषित किया है। कुणाल ने लम्बा सा प्रेम पत्र भेजा है।
वह जानती है, अब उसके पास इन शब्दों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है , और हैरानी की बात तो यह है कि वह नहीं जानती यदि उसका रास्ता ग़लत था , तो सही रास्ता क्या होता , और यदि उसका रास्ता सही था तो वे चारों एक-दूसरे से इतने दूर क्यों हैं, क्यों कुणाल अब भी घर नहीं रहना चाहता , क्यों अभी तक नाती पोते नहीं है, क्यों उनका मिलना जुलना इतना योजनाबध्द तरीक़े से होता है ?
वह समझ गई , इतने सारे प्रश्नों के उत्तर यदि उसे मिल भी जायें , तो भी समय चक्र बदलने का सामर्थ्य उसमें नहीं है , उसे ही जीवन में नए अर्थ भरने होंगे, और उसके क़दम यकायक पास के अनाथ आश्रम की ओर चल दिये ।
शशि महाजन – लेखिका
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