खरीददारी को चले
विनोद सिल्ला की कुंडलियां
खरीददारी को चले, थैला भर के नोट|
बढ़े दाम हर चीज के, जेब में लगे खोट||
जेब में लगे खोट, आमदनी लड़खड़ाए|
अर्थतंत्र बेहोश, संभल नहीं जो पाए||
कह सिल्ला कविराय, बने कैसे तरकारी|
बढ़े बहुत हैं दाम, न होए खरीददारी||
-विनोद सिल्ला©