*******खबर आई नहीं यार की********
*******खबर आई नहीं यार की********
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हो गई मुद्द्त खबर आई नहीं है यार की,
चाहना शिद्द्त मगर आई नहीं है यार की।
ढूंढ कर हारा जहां कोइ पता चलता नहीं,
पी रहा नफरत जहर आई नहीं है यार की।
सोचता हूँ हर घड़ी मै खोजता हर रहगुजार,
हर गली कूचा शहर आई नहीं है यार की।
राह सीधी भी न आती है हमे कोई नजर,
कौन सी पकडूँ डगर आई नहीं है यार की।
क्या करूँ खोया रहूँ रहता सदा हूँ बाट में,
याद आये पल पहर आई नहीं है यार की।
नींद भी आती नहीं हूँ जागता दिन रात मै,
प्रेम की बहती नहर आई नहीं है यार की।
छोड़ कर मनमीत को यार मनसीरत जिये,
सह न पाऊं यह कहर आई नहीं है यार की।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)