खत
छिपाए रखा
खतों को मैनें पन्नों
में आज तक
जमीं गर्द के
बीच किताबों की जो
की गई सफाई
निकल पड़ा
उनमें से सुन्दर
खूबसूरत
आज भी वहीं
बीस साल पहले
जैसी सुगन्ध
निकल पड़ी
जो उन पन्नों में से
सिहरा दिया
उस ताजगी
से भरे गुलाब की
भेंट किया जो
तुमने मुझे
बहुत प्यार से था
तब से अब
बीता हो गया
कितना ही समय
फिर भी अब
वो याद ऐसी
देह में है समायी
जैसे बारिश
के मौसम में
भीगा हो रोम रोम
पहली बार
या फिर पत्ते
पर गिरी ओंस बूँद
फैल गयी हो
बिखेर कर
स्वयं नवयौवन
ऐसा आभास
तब से आज
तक सम्हाले रखा
गुलाब फूल