खत
सुनील का बचपन का सपना था फौज में भर्ती होने का। उसे उनकी वर्दी बहुत अच्छी लगती थी । स्कूल में भी फैंसी ड्रेस में वो फौजी ही बनना पसन्द करता था ।पापा का साया 2 वर्ष की उम्र में ही हट गया था। वो भी फौज में थे । सुनील मां को बेइंतहा प्यार करता था ।पढ़ने में वो कोई खास नहीं था । इंटर करने के बाद उसने माँ से कहा वो फौज में जायेगा तो माँ का मन छोटा सा हो गया। पति का साथ बहुत कम दिन का मिला । अब बेटा भी जाने के लिए कह रहा था । कैसे कटेगी वो ज़िन्दगी अगर…….सोचते ही उसकी रुह काँप सी गई। उसने समझाने की कोशिश की लेकिन उसकी एक न चली। और एक दिन सुनील विदा लेकर फौज में चला गया । पर हर हफ्ते एक पत्र भेजने का वादा करके । और वो अपना वादा पूरा भी कर रहा था ।
अचानक सीमा पर दुश्मन ने धावा बोला तो उसकी टीम को भी अगले सप्ताह लड़ाई पर जाना था । कुछ भी हो सकता था । उसने पूरी रात बैठकर ढेर सारे खत लिखे। हर हफ्ते का एक। एक मोटी गड्डी बनाकर उसने अपने दोस्त को सौप दी और हर इतवार उनमें से एक को पोस्ट करवाने का वादा ले लिया और लड़ाई पर चला गया। अचानक दुश्मन के इलाके में वो लापता हो गया। माँ को तो कुछ पता ही नहीं चला । उस तक खत पहुंचते रहे और वो खैर मनाती रही। उधर आर्मी उसको खोजती रही उसका कुछ पता नही चला । उन्होंने उसे मरा हुआ मान लिया। घर पर खबर भिजवाई जो उस मित्र ने मां तक नहीं पहुंचने दी। मां की साँसे चिट्ठियों से चलती रही। एक बार मां बहुत बीमार पड़ गई । उसे लगा अब वो नहीं बचेगी। मां ने बेटे को खबर भिजवाई। हेड क्वार्टर से उसके 2 साल पहले ही मरने की खबर गई । ये सुनते ही मां की साँसे बन्द हो गई….
उधर बेटा दुश्मन के जंगलों में भटकता रहा। किसी कबीले द्वारा पकड़ लिया गया । किसी तरह उनके चंगुल से बाहर निकल कर बुरी हालत में घर पहुंचा तो माँ का मृत शरीर उसे मिला। उसके पास उसके सारे खत पड़े थे । धक्के खा खा कर सुनील वैसे ही टूट चुका था ये झटका बर्दाश्त नहीं कर सका। उसने भी माँ के सीने से लगकर प्राण त्याग दिए। उनकी अंतिम यात्रा में हर आंख नम थी …
29-08-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद