खत को पढ़ा नहीं
चेहरे पे लगाने को मुखौटा गढ़ा नहीं
शायद इसीलिए मेरा रुतबा बढ़ा नहीं
कागज पे रख दिया था मैने दिल निकालकर
पर तुमने कभी खोल के खत को पढ़ा नहीं
चेहरे पे लगाने को मुखौटा गढ़ा नहीं
शायद इसीलिए मेरा रुतबा बढ़ा नहीं
कागज पे रख दिया था मैने दिल निकालकर
पर तुमने कभी खोल के खत को पढ़ा नहीं