खंजर
पंछी भी
कितने
नादां
होते हैं
जहाँ
खंजर
होता है
फिर भी
वहीं
भागे
चले
आते हैं
स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल
पंछी भी
कितने
नादां
होते हैं
जहाँ
खंजर
होता है
फिर भी
वहीं
भागे
चले
आते हैं
स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल