क्षमावाचन
अपने से अपने को को क्षमा करने का पर्व है क्षमापन
कल को भूल जाना और क्षमा करने का भी पूर्ण जतन
सबमें ही ‘मैं’ देखने का और समझने का है सकल समर्पण ।
उपासना,साधना से समय मैत्री स्व का सम्पूर्ण विसर्जन
जीवन का साक्षी ही क्षमाभाव मानो है जीवन वो दर्पण।
क्रोध,अंहकार,राग-द्वेष,कषाय का जीवन से पूर्ण विसर्जन
क्षमावाचन मंगल पाठ से अपनत्व का सात्विक आमंत्रण ।
क्षमा भाव सेआत्मनुशासन अन्तश्चेतना का रूपांतरण
है अभी क्षण वहीं जीवंत,जाग्रत वहीं निज का अन्वेषण ।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान