क्षण भर पीर को सोने दो …..
क्षण भर पीर को सोने दो …..
क्षण भर पीर को सोने दो
…चाह को मुखरित होने दो
…….जाने फिर कब चमके चाँद
………..अधर को अधर का होने दो
क्षण भर पीर को सोने दो …..
वो आलौकिक मुख आकर्षण
…मौन भावों का प्रणय समर्पण
……….अंतस्तल में तृप्त तृषा का
……….वो स्पर्श अभिनंदन होने दो
क्षण भर पीर को सोने दो …..
बीत न जाए शीत विभावरी
…विभावरी तो विभा से हारी
…….अंग अंग को प्रीत गंध का
…………अनुपम उपवन होने दो
क्षण भर पीर को सोने दो …..
सुशील सरना