“क्षणिक जी लेने दो इन प्यार भरे पलों को”#बच्चों की नई सोच नई दुनिया#
पायल ओ पायल चल उठ ना और कितनी देर तक सोएगी ? सोने दो न मॉं, एक रविवार ही तो मिलता है , सोने को । “बेटी मैं तो समझती हूँ न, मॉं जो ठहरी, लेकिन तेरा विवाह हो जाएगा, फिर ससुराल में तुझे कौन समझेगा” ? अरे पायल मैं तो बोल-बोलकर थक गई, ये लड़की भी न, सुनेगी थोड़ी किसी की ।
अरे कोमल सोने दो उसे, क्यों बेचारी को नींद में से उठा रही हो, सुनील ने कहा । अभी हम दोनो है न ? इसलिए चिंता नहीं है बच्चों को चाहे पायल हो या फिर पुनीत हो ।” सुनो जी तुम तो मॉं-बेटी के बीच में बोलो मति, कल को दूसरे घर जाएगी और छुट्टी के दिन इस तरह सोएगी”, तो कौन बर्दाश्त करेगा जी ? वैसे भी पिताजी को कोई कुछ नहीं बोलता, मॉं के ऊपर सब उंगली उठाएंगे, कैसी आदत लगाई है मॉं ने ?
फिर सुनील और कोमल आपस में बात करने लगे । अरे कोमल नई नई नौकरी लगी है,” कंपनी में पायल की और तो और एक ही शिफ्ट निर्धारित नहीं है न उसकी”, कभी सुबह की कभी रात की शिफ्ट भी तो बदलती रहती है । “हॉं सुनील बात तो सही है आपकी पर यह हम समझते हैं” । जब शादी हो जाएगी इसकी, तब ससुराल में समझना चाहिए न, सभी ने । अरे कोमल जी आप चिंता ना करें, “आजकल की बढ़ती हुई महंगाई की मार और वक्त की नजाकत सब ठीक कर देंगी”, जैसे हम दोनों ने नौकरी करके भी बच्चों की परवरिश परिवार में सबके साथ रहकर भी कर ही ली ना ? “अरे सुनील वह तो किस्मत अच्छी मेरी जो आप जैसा पति पाया” और जैसे हमने आपस में सामंजस्य के साथ घर और ऑफीस के कार्यों को अपनी पूर्ण सहभागिता के साथ निभाया न ? वैसे यह नई पीढ़ी निभाएगी या नहीं यह कहना तो मुश्किल है ? “लेकिन मेरा सोचना ऐसा कि आजकल हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धात्मकता के साथ कार्यों को अंतिम रूप देने की प्रथा ही हो गई है” । मैं पायल या पुनीत को सोने के लिए रोक नहीं रही हॅूं बल्कि आने वाले समय के लिए तैयार कर रही हॅूँ । “कल को यदि घर से बाहर भी रहने का वक्त आए तो सक्रीयता से हर कार्य को पूर्ण कर सकें” ।
“आजकल तो बेटी की शादी होने के बाद हम माता-पिता सोच ही नहीं सकते कि ससुराल में कोई सहायता करेगा, क्यों कि जो कुछ करना है, चाहे फिर वो शॉपिंग हो, घर का काम हो, बैंक के काम हो और आजकल तो नेटवर्किंग का जमाना है, साथ ही ऑफीस तो है ही” । “मेरा यह सोचना है कि मेरे बच्चे किसी पर भी निभर्र ना रहते हुए पूर्ण सक्षमता के साथ स्वयं ही करें “।
सुनील कोमल की बातें बहुत ध्यान से सुन रहा था, गहराई जो थी बातों में, पर वह एक बात बोला कोमल जैसे नया जमाना प्रतिस्पर्धात्मक हो गया है,” ठीक वैसे ही बड़े-बड़े शहरों में लोगों की सोच में सकारात्मक बदलाव भी आया है” और बेटी हो या बहु वर्तमान युग में यदि वह नौकरीपेशा या अन्य किसी भी कार्य से जुड़ी हुई हो, उन पर हम अपनी अपेक्षाऍं थोप नहीं सकते । “उनको समयानुसार चलने की छूट दी जाना परम आवश्यक है ही और साथ ही सकारात्मक सोच के साथ उन्हें सहयोग करना भी नितांत आवश्यक है” ।
इतने में पायल उठकर आती है और मॉं से स्नेहपूर्वक कहती है, चाय मिलेगी मॉं ? “मैं न पापा-मम्मी काफी देर से जगी ही थी, आप लोगों की चर्चा सुन रही थी” ।
कोमल बेटी के लिए चाय लेकर आती है और “पायल पापा-मम्मी से गले मिलकर कहती है, दुनियां में पापा-मम्मी का रिश्ता ही ऐसा रिश्ता है, जो निस्वार्थ रूप से अपने बच्चों की हर बात को बिनकहे ही समझ लेता है, मैं न पुनीत से हमेशा से कहती आईं हॅूं” । “अपने पापा-मम्मी कितने अच्छे हैं, अपनी हर जरूरत बिना बताए ही समझ जाते हैं” । पापा-मम्मी मेरा आपसे सिर्फ इतना कहना है कि आप दोनों ने ही वक्त आने पर अकेले राह किस तरह पकड़ना सिखाया है न ? फिर कैसी चिंता ? आप लोग टेंशन नहीं लेने का क्या ? “लेकिन जब तक आपके साथ रह रहे हैं, हम बहन-भाई को आपके प्यार एवं स्नेह के ऑंचल तले खुशनुमा माहौल में क्षणिक जी लेने दो इन प्यार भरे पलों को” ।
जी हॉं पाठकों, फिर बताईएगा कैसी लगी मेरी कहानी ? मुझे आपकी आख्या का इंतजार रहेगा और हॉं आप सभी पाठकों से निवेदन करना चाहती हॅूं कि इसके अलावा आप मेरे अन्य ब्लॉग्स पढ़ने हेतु आमंत्रित है और हॉं मुझे फॉलो भी कर सकते हैं ।
धन्यवाद आपका ।