क्षणिकाएं
क्षणिकाएं
मुहब्बत में अंजाम की परवाह किसे
ये वो शै है जिसका कोई अंजाम नहीं
अफ़सोस नहीं है मुझे मेरी मुहब्बत की नाकामी का
इतना ही काफी है मेरे लिए, मैंने उसे चाहा तो दिल से था
अमानत हो गए वो किसी और की
पर आज भी काबिज हैं वो मेरे दिल के आशियां में
अज़ीज़ है वो मुझे दिल की गहराइयों तक
चाहे वो खुश हो रहे हों किसी गैर की बाहों में
मैं आरज़ू करता नहीं आहिस्ता – आहिस्ता उसके करीब जाने की
वो आहिस्ता – आहिस्ता किसी और के करीब हो गए
इज़हार न कर सका मैं अपनी मुहब्बत का उनको
सिला ये मिला वो किसी और की जिन्दगी का नूर हो गए
इनाम ये मिला मुझे, मेरी मुहब्बत का यारों
मैं उन्हें ढूंढता रहा , वो किसी और के हो लिए
जिन्दगी – ए – तन्हाई वो महसूस क्या करें
जो जी रहे हैं किसी और की मुहब्बत की छाँव में
किनारा हर किसी को नहीं मिलता
सहारा हर किसी को नहीं मिलता
डूबते तो सभी हैं एक दिन मुहब्बत में
पर मुहब्बत – ए – खुदा सभी को नहीं मिलता
अपनी खूबसूरती को समझ बैठे वो
ताउम्र की अमानत
आखिर वक़्त ने उन्हें
आईना दिखा ही दिया
इज़हार क्या करूं मैं अपनी
इबादत का ऐ मेरे खुदा
ये तेरा करम है जो
मैं तेरा नमाज़ी हो गया
तदबीर से ज्यादा यकीन
मैंने अपनी तकदीर पर किया
जो भी मिला मुझे ऐ मेरे खुदा
मैंने उसे अपना मुकद्दर समझ लिया
दाग धोने की उनको फ़िक्र नहीं है ऐ मेरे खुदा
तभी तो गुनाह पर गुनाह किये जा रहे हैं लोग