क्षणिकाएँ
उपकार
बंजर थी जमीं/
आसमानी इश्क ने/
कर दिया हरा-भरा /
इश्क का उपहार /
ज़मीं-आसमां पर/
ये था उपकार!
हाथों की खाली लकीरें
मेहंदी लगते ही
सुहागन हो गई
रूह ने रूह को चुना
जिंदगी संदल हो गई
फिर से इश्क ने किया
अहसान!
इश्क़ ने
ग़ज़ल कही
ख़ामोश लफ्ज़
बोल पड़े
वाह!..
प्यार ने सौगात में
जुबां को दे दिए हर्फ़
शुक्रिया ऐ इश्क़!…
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)