क्रिकेटफैन फैमिली
क्रिकेटफैन फैमिली
बचपन से क्रिकेट के लिए पागलपन की हद तक दीवानी है कुसुम. आईपीएल, टी-ट्वेंटी, वन डे या टेस्ट, क्रिकेट का कोई भी मैच हो, सारा काम-धाम, पढाई-लिखाई छोड़कर चिपक जाती थी टी.व्ही. पर. वह परीक्षा की तैयारी उस तत्परता से कभी नहीं करती थी जैसी कि क्रिकेट मैच देखने की करती. बिस्किट, चिप्स, कुरकुरे, चना, मुर्रा, चाय, कोल्ड ड्रिंक्स सब कुछ पहले से ही तैयार. कौन-सा मैच किन-किन सहेलियों के साथ देखना है यह भी बी.सी.सी.आई. द्वारा टाइम टेबल जारी होते ही कुसुम तय कर लेती थी. मम्मी-पापा और दादी माँ को पहले ही बता देती थी कि जो भी काम है, मैच शुरू होने से पहले करा लीजिए, वरना मैच के बीच वह कुछ भी नहीं कर पाएगी. मम्मी-पापा और दादी माँ परेशान थे कि “यहाँ तो ये सब चल जाएगा, पर ससुराल में क्या करेगी ये लड़की.”
समय का पहिया चलता रहा. जवानी की दहलीज पर पहुँचते ही उसी शहर में अच्छा घर-वर देख कर उसकी शादी कर दी गई. अब कुसुम क्या करे ?
शादी के महीने भर बाद ही चैम्पियंस ट्रोफी, उसमें भी पहला ही मैच पाकिस्तान के साथ. ऊपर से सन्डे का दिन. सास-ससुर, पति, ननद सब घर में ही रहेंगे. कुसुम परेशान. पाँच दिन पहले ही मायके से लौटी है, सो वहाँ भी नहीं जा सकती.
पर ये क्या ?
ससुर जी सुबह-सुबह सबको हाल में बुलाकर समझा रहे थे. “देखो, जैसाकि तुम सब लोग जानते ही हो कि आज से चैम्पियंस ट्रोफी शुरू हो रही है और ये लगभग हफ्तेभर चलेगा. आज पहला ही मैच भारत-पाकिस्तान का है. सो मैच के पहले ही तुम सब अपने-अपने काम-काज निपटा लिया करो. राजेश, तुम बाजार से ढेर सारे बिस्किट, चिप्स, कुरकुरे, कोल्ड ड्रिंक्स वगैरह ले आए रहना. बहू, तुम्हारी कुछ स्पेशल च्वाइस हो तो राजेश को नोट करा देना, और हाँ बहू, तुम दस-बारह कप चाय बनाकर थर्मस में रख लेना. खाना लंच ब्रेक में बन जाना चाहिए. इसके लिए मालती, तुम अपनी भाभी के साथ किचन में लग जाना. मैच के बीच में कोई किसी को काम के लिए आदेश करे, ये मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा. हम सब एक साथ मैच का मजा लेंगे. इस बार तो हमारी बहू भी साथ ही रहेगी. क्यों दीपा, क्या ख़याल है तुम्हारा ?”
“जी हां, आप बेवजह टेंशन ना लें, हम सब व्यवस्था कर लेंगे. राजेश, हो सकता है तुम्हारे सास-ससुर और दादी सास भी आएँ, साथ में मैच देखने को. शादी के बाद पहला मैच है बहू की ससुराल में, सो कल शाम को ही मैंने फोन कर के बुला लिया है उन्हें. इसलिए तुम कुछ सुगर-फ्री मिठाई भी लेते आना. ठीक है. चलो, अब लग जाओ सब अपने-अपने काम में.” सासू माँ बोल रही थीं.
कुसुम को सपने जैसा ही लग रहा था.
काश ! उसके मम्मी-पापा और दादी माँ भी ये बात सुन ली होतीं. अब वह पापा का नंबर डायल कर रही थी.
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़