क्यों रूठे हो मोहन! ( श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष)
क्यों रूठे हो मोहन मुझसे ,
कोई कारण यदि जान पाऊँ।
हाथ जोडूं ,चरण पकडूँ तेरे ,
तू जैसा कहे वैसे तुझे मनायुं।
मझधार में छोड़कर मुझे ,
तुमने कर दिया अकेला।
ना ही कोई हमराज़ है ,
ना हमदर्द ना साथी-सुहेला।
अब तेरा दर छोड़कर कहाँ जायुं।
भूल हो गयी मुझे बड़ी ,
ना याद रहा तेरा वायदा ,
मूरख थी नादान थी मैं ,
न समझ सकी माया का इरादा।
जाल में फंसी मीन की तरह अब छटपटायुं। ।
कन्हैया ! तुम तो बड़े दयालु हो ,
हो तुम जगत के पालनहार ,
तुम्हारे सिवा हम भाग्यहीन को ,
कौन देगा प्यार और दुलार।
अब माफ़ भी कर दो मैं तेरे समक्ष गिड़गिड़ायूँ। …
कहने की कोई ज़रूरत नहीं ,
तुम सब कुछ जानते हो।
तुम हो अंतर्यामी ,प्रभु !
अंतर की गति पहचानते हो।
मैं कैसे तुझे दिल खोल के दिखलायुं। …
सौभाग्य जगा दो मेरे दीन बंधू !
करके मुझपर असीम उपकार।
पार लगा दो इस भवसागर से ,
मेरी जीवन नैया के ओ खेवनहार !
अब छोड़ भी दो ज़िद अपनी , मैं गुहार लगायुं।