क्यों पड़ी है गांठ, आओ खोल दें।
क्यों पड़ी है गांठ, आओ खोल दें।
प्रीति के प्रिय शब्द, मीठे बोल दें।
हम करें नित प्यार, शिकवे छोड़ कर।
भूल कर मतभेद, मिश्री घोल लें।
~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०६/१०/२०२३
क्यों पड़ी है गांठ, आओ खोल दें।
प्रीति के प्रिय शब्द, मीठे बोल दें।
हम करें नित प्यार, शिकवे छोड़ कर।
भूल कर मतभेद, मिश्री घोल लें।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०६/१०/२०२३