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23 Nov 2018 · 2 min read

क्योंकि मृत हूँ मैं

हमेशा से ऐसा ही तो था

हाँ.. हमेशा से ऐसा ही था

जैसा आज हूँ मैं

न कभी बदला था मैं

और ना ही कभी बदलूंगा

क्योंकि.. मृत हूँ मैं!

मेरे पास…

आत्मा तो कभी थी ही नहीं

भीड़ के साथ चलता हुआ

एक आदमी हूँ मैं

हाँ.. आदमी ही हूँ

पर विवेक शून्य हूँ मैं

क्योंकि… मृत हूँ मैं!

देखता हूँ शराबी पति को

बड़ी बेरहमी से, पत्नी को

मारते हुए, दुत्कारते हुए

पर.. मैं कुछ नहीं करता

‘ये उनका आपसी मसला है!’

कहकर पल्ला झाड़ लेता हूँ मैं

क्योंकि.. मृत हूं मैं!

मेरी आँखों के सामने

किसी मासूम की आबरू लुटती है

और मैं.. निरीह सा खड़ा होकर देखता हूँ..

न जाने क्या सोचता हूँ

मेरे अंतस का धृतराष्ट्र

कुछ नहीं करता

क्योंकि.. मृत हूं मैं!

पर जब बारी आती है

कैंडल मार्च की

तो मैं भी.. कभी – कभार,

हाँ.. कभी- कभार अपनी उपस्थिति

दर्ज करवाने से पीछे नहीं हटता

और कभी – कभार तो

दूसरों से प्रभावित होकर

उनकी राय को

एक सुंदर – सा

लबादा पहनाकर

उसे अपनी राय बना देता हूँ..

मेरी अपनी कोई राय नहीं..

क्योंकि.. मृत हूँ मैं!

आठ बजे से छह बजे की नौकरी

में ही तो मेरा अस्तित्व है

मैं किसी और के लिए

जी ही नहीं सकता

क्योंकि.. मृत हूं मैं!

कोई अम्बुलंस

बगल से जा रही हो

तो मैं.. उसे जाने का रास्ता नहीं देता

अरे.. उसी जैसा तो मैं भी हूँ न

अचेतन..

क्योंकि.. मृत हूँ मैं!

मेरे ही आँखों के सामने

सरेआम.. कोई शहीद हो जाता है..

कोई गोलियों से भून दिया जाता है..

और मैं कुछ नहीं कर पाता

क्योंकि.. मृत हूँ मैं!

देश के लिए मर मिटने की जिम्मेदारी

मेरे कंधों पर थोड़े ही है

वो काम तो सिपाहियों का है

आखिर.. इस देश से मुझे मिला ही क्या है

नहीं भाई…यह सब तो

मैं सोच भी नहीं सकता

क्योंकि.. मृत हूँ मैं!

नेताओं को गाली देना

तो जन्म सिद्ध अधिकार है मेरा

पर एक अच्छा नेता बनकर

देश की कमान संभालना..

उसे ऊंचाई पर ले जाना..

मेरा काम नहीं है

चुनाव के दिन छुट्टी

समझ में आती है मुझे

पर वोट करना नहीं समझता

क्योंकि.. मृत हूँ मैं!

मैं ,मेरा के आगे..

मुझे दुनिया दिखाई नहीं देती

क्योंकि.. मृत हूँ मैं!

और शायद..हमेशा

ऐसा ही रहूँगा मैं

क्योंकि.. मृत हूँ मैं!

हाँ.. मृत हूँ मैं!

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 410 Views
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