क्या हुआ गर नहीं हुआ, पूरा कोई एक सपना
क्या हुआ गर नहीं हुआ, पूरा कोई एक सपना।।
यह भी तो अच्छा नहीं, एक के लिए ही जीना- मरना।।
क्या हुआ गर नहीं हुआ———————।।
बहुत हैं सपनें जीवन में, जैसे चमन में फूल बहुत।
जैसे चमकते हैं आसमां में, रात को तारें बहुत।।
और क्या बादलों के डर से, रुक जाता है सूरज का चलना।
क्या हुआ गर नहीं हुआ——————–।।
खुशकिस्मत हम खुद को माने, मानव जन्म जो हमको मिला।
तूफानों से डरकर रुके क्यों, गुलाब भी है काँटों में खिला।।
फिर क्या चट्टानों के डर से, रूक जाता है जल का बहना।
क्या हुआ गर नहीं हुआ———————-।।
माना तुम्हें था जान से प्यारा, जिसने तुम्हारा साथ छोड़ा।
मिलती थी तुमको जिससे हिम्मत, जिसने तुम्हारा हाथ छोड़ा।।
एक दुनिया भी तो एक मेला है, जहाँ है मिलना और बिछुड़ना।
क्या हुआ गर नहीं हुआ———————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)