क्या हुआ गर तू है अकेला इस जहां में
क्या हुआ गर तू है अकेला इस जहां में।
हारना नहीं तू बाजी, अपनी इस जहां में।।
फहराना सदा तू अपनी विजय पताका।
नहीं मोड़ना तू अपना मुँह अपनी राह में।।
क्या हुआ गर तू है———————–।।
एक बीज से तो बन जाता है एक चमन।
एक सूरज से ही रोशन है धरती- गगन।।
मेहनत से कभी तू , जी नहीं चुराना।
होगी हजारों खुशियां, सच तेरी बाँह में।।
क्या हुआ गर तू है——————–।।
काँटों का ही ताज है, यह जिंदगी तो।
संघर्ष का ही नाम है, यह जिंदगी तो।।
तूफानों से टकराकर जो आगे बढ़ा है।
हुआ है आबाद वह, सच इस जहां में।।
क्या हुआ गर तू है——————–।।
खत्म नहीं करना जिंदगी को, होकर निराश।
छोड़ दें होना इस तरहां तू मायूस- उदास।।
ले मजा तू हँसते हुए अपनी जिंदगी का।
होगी बारिश फूलों की, सच तेरी राह में।।
क्या हुआ गर तू है——————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)