क्या ही रोते हम
क्या ही रोते हम, हमारे शहर में बचा न था कोई हंसाने वाला
सब थे चुप तमाशाई की तरह कोई भी न था घर तक पहुंचाने वाला
घर से निकल कर हम घर ही के अहाते में रहे
कोई मिला ही नहीं अंधेरे में जुगनू जलाने वाला
~ सिद्धार्थ
क्या ही रोते हम, हमारे शहर में बचा न था कोई हंसाने वाला
सब थे चुप तमाशाई की तरह कोई भी न था घर तक पहुंचाने वाला
घर से निकल कर हम घर ही के अहाते में रहे
कोई मिला ही नहीं अंधेरे में जुगनू जलाने वाला
~ सिद्धार्थ