क्या से क्या हो गया
**** क्या से क्या हो गया ****
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इश्क में क्या से क्या है हो गया,
ज़ुल्फ़ उसकी उड़ी मैं खो गया।
आग ऐसी लगी बुझती नहीं,
बीज अनुराग के वह बो गया।
तुम भले ना मिलो अक्सर हमें,
रंज में अश्क दो वो रो गया।
उठ न पाए कभी हम स्थान से,
भार गम का यहाँ पर ढो गया।
मर सका भी न मनसीरत कहीं।
पाप अपने हमीं पर धो गया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)