क्या लिखूँ….?
जय माँ शारदे.
क्या लिखूँ?..
लिखना चाहती हूँ दर्द ,यशोधरा का।
फिर चाहा लिखूँ फ़र्ज,उर्मिला का ।
सुनो,क्या लिख दूँ तप मैं माण्डवी का?
या फिर प्रेम लिखूँ जनकसुता सीता का।
क्या लिख दूँ पीर ,शैल माता अंजना की?
या व्यथा लिखूँ शिला सम उस अहिल्या की?
चलो लिखती हूँ सत् सावित्री के शील का
न, ममता में कौन राम जननी कौशल्या सी?
रे ‘मन’तू क्यों व्यर्थ में जग में भटक रहा?
लिख व्यथा वेदना जगती की हर नारी की।
उत्पीड़न ,अवशोषण लिख वसुधा की।
लिख तू श्वासों का स्पंदन उस धरा का
लिख चिर प्यास चातक की,मिलन चाँद का।
व्यथा सबकी एक सम ,लिख तू खुद को ही गढ़।
सभी पीड़ाएँ मुखर हो जाएँगी,नारी सब में समाहित।
मनोरमा जैन पाखी (मिहिरा)
29/08/2022