क्या यह कलयुग का आगाज है?
जय जोहार
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“आजकल सीरत का सम्मान नहीं, सूरत का बाजार है।
प्यार की चिड़िया उड़ गई ,बस जिस्मों की चाह है।
इंसानियत की जगह नहीं, बस इंसान बिकने को तैयार है।
सब्र का फल मीठा नहीं अब ,बस फल की तलाश है।
सब दिख भी रहा है, सब बिक भी रहा है ।
क्या यह कलयुग का आगाज है।”
✍️ राकेश देवडे़ बिरसावादी 🌱