“क्या मैं वही नही हूं”
मिल जाए उलझनों से फुरसत
तो जरा सोचना,
क्या मैं वही नही हूं
जिसकी तलाश थी तुम्हें युगों से।
कभी मिल जाए फुरसत
तो जरा सोचना,
क्या मैं वही नही हूं
जिसके लिए भटक रहे थे तुम युगों से।
नहीं समझ में आए तो,
पूछना हवाओं से
जो मेरी खुशबू फैलाती रही फिजाओं में।
पूछना इन बदलियों से
जो मेरे काजल बहाती रही
आसमानों में।
पूछना इन नदियों से
जो मेरे सुरों को बजाती रही
गीतों के सरगम में।
पूछना इन फूलों से
जो मेरी मुस्कान बिखेरते रही भ्रमरों में ।
सच बताना,क्या मैं वही नही हूं।
© डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”…