क्या मेरी कलाई सूनी रहेगी ?
एक सिपाही की व्यथा …जब राखी आती है और उसकी कोई सगी बहन नहीं होती है… ये व्यथा हर उस भाई के लिए है जिनकी कोई सगी बहन नहीं होती है और उनकी राखी कुछ इस प्रकार से होती है…..
आंखे और हृदय नम है मेरी
मैं तो हूं इस मिट्टी का गहना l
क्या मेरी कलाई सूनी रहेगी
मेरी तो कोई नहीं है बहना ll
क्या कसूर हमारा था
क्यों कुदरत ने करिश्मा नहीं दिखाई l
मां की झोली बेटी से खाली
क्यों मेरे घर की दीपक नहीं जलाई ll
ना माथे पर तिलक होता है..
रक्षाबंधन के दिन आंखे रोती है l
सुबह से लेकर रात तक
नजर और कलाई की जब भेंट होती है ll
वैसे तो देश की रक्षा करता हूं
राक्षस, हैवान और आतंकियों से l
गर होता अपने गांवो में तो
कलाई सज जाती राखियो से ll
ब से बंदूक और ब से बहना
अब वहीं मेरी साखी है l
उसके साथ ही हंसना – खेलना
अब रोज हमारी राखी है ll
वैसे हमारे नाम पर घर से
बस एक राखी निकाल देना l
दही, अक्षत और रोली का
तिलक हमारे भाल देना ll
मेरे मन की व्यथा लिखे हो
तेरी भी तो बहन नहीं है l
ईश्वर से ये है शिकवा
ये दु:ख दोनों से सहन नहीं है ll
✍️ Kumar Anu Ojha