क्या मागे माँ तुझसे हम, बिन मांगे सब पाया है
क्या मागे माँ तुझसे हम, बिन मांगे सब पाया है
जीवन के पल पल सब, हमने तुझसे ही पाया है
सूरज ने माँ तेज तुझसे, चँदा ने सितल पाया है
शाम सवेरा दूध पिलाया, तुझसे जीवन पाया है
हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, ये अमृत पाया है
धर्म मजहब की आड़ मे, माँ हमने तुझे सताया है
राजनीति वोटो की खातिर, भेट गो धन लगाया है
धरती की कोख को माँ, तूने ही उपजाऊ बनाया है
तेरा पुरा जीवन हमने माँ, व्यापार ही धर्म बनाया है
कत्ल खानों में तुझसे माँ, पैसा भी बहुत कमाया है
गो रक्षा की आड मे माँ, हमने खून बहुत बहाया है
कुछ आस्तीन के साँपो ने, माँ तुझे काट कर खाया है
अपनी माँ को काट कर, वो जिन्दा कैसे रह पाया है
बहुत सह लिया अब माता, मे गो कानून का बोलुगा
जब तक मेरी सास चलेगी, लिख लिख कर बोलुगा
भारत कि गो की रक्षा हेतु, जीवन अपना मे लगा दूंगा
एक एक व्यक्ति के मन में, गो रक्षा की आग लगा दूँगा
अनिल चौबीस