क्या पत्नी को पति का नाम लेना चाहिए या नहीं।
अपने ग्रामीण क्षेत्र में काम के दौरान कई दफा देखने को मिला कि समाज मे स्त्रिया अपने पति का नाम लेने से बचती है। वही स्त्रियां अपने पति के द्वारा सताए जाने पर तमाम गालियों से भी नवाजने से भी नही थकती है।तो फिर चर्चा उतनी महत्वपूर्ण नही लगती है।
सच तो ये है कि ये चर्चा ही आज समाज मे लिंग-भेद व स्त्री-पुरुष समानता के कारण की जाने लगी है अन्यथा एक पत्नी को अपने पति का नाम लेना चाहिए या नही? अथवा एक पति को अपनी पत्नी का नाम लेना चाहिए या नहीं? ये सामाजिक से ज्यादा निजी मसला अधिक लगता है।
अगर थोड़ा भी गौर किया जाए तो ये बात और इस बात पर चर्चा ही व्यर्थ सी लगती है।अगर बात करनी ही है तो सिर्फ इतनी कि पति व पत्नी को एक दूसरे की अदब करनी चाहिए उन्हें अपने रिश्ते का एतराम करना चाहिए। अब इस पर वो खुद निर्णय लेले कि कैसे अपने जीवनसाथी व रिश्ते का सम्मान करना है।
अब इसमें नाम लेना है या नही लेना है से ज्यादा जरुरी है कि
उनके बीच आपसी सामंजस्य से एक सम्मान व प्रेम की भावना है कि नही।क्योकि नाम तो आप सिर्फ समाज को अपने रिश्ते से रूबरू कराने के लिए लेते है या नही लेते है। तो नाम लेना या न लेना कोई इतना बड़ा मुद्दा प्रतीत नही होता है। हाँ बस ये बात लाजमी है कि नाम न लेने पर समाज या परिवार उनको बेअदब समझे मुख्यत पत्नी को लेकिन वही बात कि ये पूर्णतः एक निजी मसला है अगर उसके पति को इस पर एतराज न हो तो क्या फर्क पड़ता है पर अगर आपके रिश्ते में प्रेम है तो वो नाम के साथ भी दिखाई दे जाएगा। मैने कभी अपनी माँ को पिता का नाम लेते नही देखा साथ ही साथ अपने पिता को भी माँ का नाम लेते नही देखा। और बिना नाम लिए ही उनकी शादी को 30 वर्ष से अधिक गए। मुझे स्वयं अपनी पत्नी का नाम लेने में अजीब लगता था तो मैने उन्हें एक प्रेम से नाम दिया। ये बात न कोई समाज के दवाब की ही न कोई परिवार के, ये बात मात्र आपके अपने जीवनसाथी के प्रति आपके सम्मान की है।