Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Dec 2023 · 3 min read

क्या ‘तेवरी’ एक विधा? डॉ. विशनकुमार शर्मा

————————————–
श्री रमेशराज ने कविता के क्षेत्र में एक विशेष प्रवृत्ति को लेकर कविता-सृजन करना आरम्भ किया है और उसका नाम रखा है-‘तेवरी’। वे ‘तेवरी’ को विधा कहते हैं-‘‘सामाजिक, राजनीतिक विकृतियों के प्रति तिलमिलाते तेवरों के आधार पर हमने तेवरी को काव्य की एक विधा के रूप में स्वीकारा है।’’ ;तेवरीपक्ष-1, पृ.1
‘तेवर’ का शाब्दिक अर्थ है-‘क्रोध् भरी चितवन’, काव्य के साथ इसका अर्थ-‘क्रोध् या विद्रोह भरी कथन-भंगिमा माना जा सकता है।
श्री रमेशराज के खेमे के कवियों के ‘तेवरी’ काव्य को पढ़ने से यह अवश्य लगता है कि उसमें सामाजिक और विशेष रूप से राजनीतिक विकृतियों के प्रति विद्रोह की भावना की प्रतिष्ठापना ही अधिक है। कुछ कवियों की इसी विद्रोह की अभिव्यक्ति ग़ज़ल की शैली में भी हुई है।
कुछ लोग ग़ज़ल की धारा को केवल प्रेम-शृंगार से जोड़ते हैं ।
प्रमुखतः ‘‘ग़ज़ल के मूल में ग़ज़ाल [हिरन का बच्चा] शब्द है। ग़ज़ल उस कराह को कहते हैं, जिसे एक ग़ज़ाल [ हिरन का बच्चा ] शिकारी का तीर लगने पर अपनी बेबसी में निकालता है। इसलिये ग़ज़ल नामक काव्य-रूप में दुनिया की नापायदारी और दर्दमंदी का जिक्र किया जाता है। इस तरह ग़ज़ल में मूलतः करुणा, शृंगार और शान्तरसों की प्रधानता रहनी चाहिए। हिन्दी की आधुनिक ग़ज़लों में शान्तरस की बात अधिक है। कतिपय ग़ज़लगो शान्ति के माध्यम से समाज और राजनीति की विकृतियों का पर्दाफाश आज भी कर रहे हैं।’’
उक्त कथन के माध्यम से मैं यह तो नहीं कहना चाहता कि ‘तेवरी’ वास्तव में ग़ज़ल है? नहीं, उसमें ग़ज़ल की शैली आंशिक ही उतारी अवश्य गयी है।
तेवरी का उद्भव एक ऐसे समाज की देन है, जिसे विशेष रूप से राजनेताओं ने सताया है। जैसे-कोई स्वतंत्र सिंहों की वनस्थली में मदमस्त हाथी अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहे। लोकतंत्र का प्रत्येक मानव स्वतंत्र सिंह है और नेता मदमस्त हाथी। उसका प्रभुत्व तभी तक है, जब तक कि चुनाव का चपेटा लोकतंत्र के मानव रूपी सिंहों के द्वारा मदमस्त हाथी के कानों पर नहीं पड़ता। ‘तेवरी के कवि’ इस ‘चपेटे’ को नेता के कानों पर बुरी तरह से पड़वाने की तैयारी कर रहे हैं।
एक प्रकार से तेवरी का सबसे प्रबल पक्ष शोषकवर्ग पर कुठाराघात करना ही है। यद्यपि अन्य कुछ सामाजिक पक्ष भी ‘तेवरी’ के अपने मूल मुद्दे हैं। हिंसा, बलात्कार, मुनाफाखोरी भी इसकी विशिष्ट प्रवृत्ति को प्रकट करते हैं। और इन सबके मूल में हैवानियत को खरीदने वाला वह नेता ही है।
सच्चा काव्य या साहित्य हमारे समाज का, हमारी राजनीति का और हमारी प्रशासन-पद्धति का वास्तविक शब्द-बिम्ब खड़ा करता है। जिस देश की सामाजिक व्यवस्था, राजनीतिक प्रपंच और प्रशासनिक चालें जैसे होंगे, साहित्य उनका वैसा ही रूप प्रस्तुत करेगा। आज हमारा समाज, हमारी राजनीति आदि जैसे बन गये हैं, उसे आज के स्वतंत्र साहित्यकार के द्वारा ठीक उसी रूप में चित्रित किया जा रहा है। गत वर्षों से कवि सम्मेलन-मंचों से लेकर लिखित काव्यकृतियों में हमको एक ही पीड़ा, एक ही घुटन सुनने को मिल रही है, वह पीड़ा या घुटन है-सामाजिक और विशेष रूप से राजनीतिक विकृतियों से सताये गये व्यक्ति की।
किसी पाश्चात्य साहित्यकार ने कहा था कि साहित्य समाज का दर्पण है। वास्तव में आज का साहित्य, विशेषरूप से ‘तेवरी’ साहित्य आज के समाज का दर्पण है। उसमें आज के मुखौटेबाज समाज के चेहरों को साफ-साफ देखा जा सकता है। साहित्य की उपयोगिता के संदर्भ में मूल बात ध्यान देने की यह है कि साहित्यकार के द्वारा जो रचना, काव्य-उपन्यास-कहानी-नाटक आदि के नाम से समाज को दी जा रही है, उसमें हमें देखना है कि मनुष्य को पशु-सुलभ धरातल से उठाकर उदात्त रास्ते पर ले जाने की क्षमता है या नहीं। यदि ऐसी क्षमता उसमें है तो वह साहित्यिक कृति है। यदि ऐसी क्षमता उसमें नहीं है तो वह कोरा वाग्जाल है, वह निरर्थक है। उसे हम साहित्यक कृति कभी नहीं कह सकते।
वास्तव में ‘तेवरी’ की कविताओं में कुछ-कुछ यह शक्ति निहित है कि वह विकृत समाज और विकृत राजनीति को ठीक कर सकेगी। बात को कहने की उसमें तीखी व्यंजना-शक्ति भी निहित है।

167 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
Ajad Mandori
यूं ही कोई शायरी में
यूं ही कोई शायरी में
शिव प्रताप लोधी
धुन
धुन
Sangeeta Beniwal
होली
होली
डॉ नवीन जोशी 'नवल'
परोपकार
परोपकार
ओंकार मिश्र
कैद है तिरी सूरत आँखों की सियाह-पुतली में,
कैद है तिरी सूरत आँखों की सियाह-पुतली में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
Annu Gurjar
पितरों का लें आशीष...!
पितरों का लें आशीष...!
मनोज कर्ण
सितमज़रीफ़ी
सितमज़रीफ़ी
Atul "Krishn"
जीवन में संघर्ष सक्त है।
जीवन में संघर्ष सक्त है।
Omee Bhargava
ज़िंदगानी
ज़िंदगानी
Shyam Sundar Subramanian
दोहा बिषय- दिशा
दोहा बिषय- दिशा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
सत्य कुमार प्रेमी
पोषित करते अर्थ से,
पोषित करते अर्थ से,
sushil sarna
3747.💐 *पूर्णिका* 💐
3747.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
पूर्वार्थ
"नजर से नजर और मेरे हाथ में तेरा हाथ हो ,
Neeraj kumar Soni
गजल सगीर
गजल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
हरवंश हृदय
बच्चे
बच्चे
Dr. Pradeep Kumar Sharma
राष्ट्र हित में मतदान
राष्ट्र हित में मतदान
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
Dr. Man Mohan Krishna
अगर प्रेम है
अगर प्रेम है
हिमांशु Kulshrestha
अनुभव 💐🙏🙏
अनुभव 💐🙏🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
शेखर सिंह
*किसकी है यह भूमि सब ,किसकी कोठी कार (कुंडलिया)*
*किसकी है यह भूमि सब ,किसकी कोठी कार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव "अज़ल"
लवकुश यादव "अज़ल"
#चिंतनीय
#चिंतनीय
*प्रणय*
"समरसता"
Dr. Kishan tandon kranti
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
कृष्णकांत गुर्जर
Loading...