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15 Jun 2021 · 1 min read

क्या जरूरी था? वृंदावन विहारी से द्वारिकाधीश तक का सफर

निगाहें खोजती थीं ,जिस कान्हा को आठो पहर।
उसी छलिये ने बहाए हैं ,आँसुओ को झर -झर।
कृष्ण से स्वप्न में पूछती है राधा ,
क्या जरूरी था?
वृंदावन विहारी से द्वारिकाधीश तक का सफर।

न जाने किस गम के ,आशियाने में रहती है राधा।
बड़ा मायूस होकर फिर ,कृष्ण से कहती है राधा।

मेरे बेबाक प्रेम का ,तुम उपहास कर गए।
मुझे हँसाते- हँसाते कितना उदास कर गए।
गिले -शिकवे अगर होते तो दूर हो जाते ,
क्या कम हो सकेगा तुमसे बिछड़ जाने का असर।
क्या जरूरी था?
वृंदावन विहारी से द्वारिकाधीश तक का सफर।
तब कहा करते थे कि ,मैं हूँ तुम्हारे बिना आधा।
द्वारिकाधीश बनने के बाद सोचा ? कैसी है राधा।
क्या मेरा दर्द तुम्हे आया है कभी – भी नजर।
क्या जरूरी था?
वृंदावन विहारी से द्वारिकाधीश तक का सफर।
हौले से अपने हाथ में मेरा हाथ लेकर चलते।
सच्चा प्रेम होता तो अपने साथ लेकर चलते।
क्या हो गया था मेरा स्नेह तुम पर बे -असर।
क्या जरूरी था?
वृंदावन विहारी से द्वारिकाधीश तक का सफर।
-सिद्धार्थ पाण्डेय

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 2 Comments · 519 Views
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