क्या ख़ता हमसे हुई कि यूँ
क्या ख़ता हमसे हुई कि यूँ
हुज़ूर परदानसीन हुए जाते हैं,
ज़र्रे ने रिश्ता तोड़ दी ज़मीन से,और
गुल का शिकवा,मैला कर दिया उनको !
मेरी बर्बादी पर हँसना उनका,
जिगरे दर्द ,बयां कर देता है !
लिफ़ाफ़ देख हर वक्त, मजमून
बयां मुश्किल होता है !
समुन्दर शोले के साथ
अगर हो इस माफ़िक़ ,
दिल पर क़ाबू हो कैसे-
मौला तुम्हीं जुगत बता दे !
पानी पर शोले का तैरना,
यूँ देखना सादगी में !
दिल से आहों का भाप
बरबस बहक जाता है ।
देख नूर निगाहों में,
नूरे दिल लूटा सा जाता है ,
कभी चिलमन भी सरकाइय्
बेचैनियों की उम्र तय नही जमाने में!
मर्ज़ इन्तज़ार समाया है साँसों में
चारागर नज़र आता नही निगाहों में !
नब्ज़ देखना हकिमी है , पर
आशिक़ी धड़कनों की क़ायल है !
चुपके से किसी दिल में
क़ब्ज़ा करने की,
संगीन गुनाह की सज़ा-
मोहब्बत कही जाती है
खुद से गुफ़्तगू कर
सनम को बसाया –
दिले जिगर में,
और इल्ज़ाम है –
सारे जमाने में ,इल्म नही –
मोहब्बत समझने समझाने में !
पूराने , जर्जर घरों मे
खिले फूलों की ख़ुशबू ,
पूरानी नही है,
वही रंग, वही उमंग ,
भौरों की नियत
नहीं बदलता कुछ भी,
बदलते जमाने में !
काश ! यादों की ,
एक उम्र होती !
जवाँ होती हैं
जर्जर जिश्म तक
हर जमाने में !
नरेन्द्र ।