क्या कहूँ
६)
” क्या कहूँ ?”
इंसा की श्रेणी में नहीं है वो आता ,
भेड़िया कहूँ तो जानवर भी शर्माता ,
काश़ कि मेरे बस में होता तो ,
बंदूक की गोली की सज़ा वो पाता ।
लड़की है वो, क्या ये उसकी है ख़ता ,
उसके अरमां को क्यों दिखाए वो धता ,
गुनाह नहीं है उसका घर से निकलना ,
दुनिया का है आधा अंग,सबको है पता ।
इंसानियत के चेहरे पर भद्दा सा दाग हो,
काजल की कोठरी में खड़ा आदमजात हो,
मर्यादा की सारी सीमाओं को लांघकर ,
बर्बरता, नृशंसता,क्रूरता का अभिशाप हो।
करतूतों से तुम्हारी माँ का दामन तार-तार है,
भाई नम आँखों से रोता झार- झार है,
हर माँ की नज़रें झुका दी उस एक ने,
मानवता को कर दिया उसने शर्मसार है।
स्वरचित और मौलिक
उषा गुप्ता, इंदौर