क्या कहुं ऐ दोस्त, तुम प्रोब्लम में हो, या तुम्हारी जिंदगी
क्या कहुं ऐ दोस्त, तुम प्रोब्लम में हो, या तुम्हारी जिंदगी
दोनो मुझे एकदम विरोधाभास लगते है एक- दूसरे के।
तुम्हारा मन ना जाने किस की तलाश में हैं,
किसी एक पर कभी स्थिर ही नही रहता है।
हर किसी में, या सब में तुम्हारा अपना ढुढने लगता है
तुम जिसके पीछे भागो, वह तुमसे उतना ही दूर जाता है।
शायद तुम्हारे एकांकी मन को समझने वाला है ही नहीं
तुम्हारे मन की पीड़ा तुम तक ही रहेंगी,
शायद यह तुम्हारे साथ ही खाक हो जाएगी।
आपका अपना
लक्की सिंह चौहान
ठि.:- बनेड़ा (राजपुर)