क्या करे ये गय्या मय्या!
कदम कदम पर घुमती मिलती,
आज कल ये गय्या मय्या,
हे गोपाल क्यों है बदहाल,
आज कल ये गय्या मय्या!
बचपन में सुना था मैंने,
पार कराती है बैतरणी,,
बुढे बुजुर्ग कहा करते थे,
अमृत समान दूध है देती,
क्यों बिसरा दिया है हमने,
गौ को माँ माना है हमने!
गौ पालन को छोडे जा रहे,
क्या करे अब गय्या मय्या,
कभी सुना था ये भी हमने,
राजा महाराजाओं के बाडे में,
पाली जाती थी ,
ये गय्या मय्या,
एक दो नहीं,
दो चार नहीं,
लाखों लाखों की संख्या में,
हुआ करती थी ये गय्या मय्या,
कभी आजीविका की रीड,
हुआ करती थी,
ये ही गय्या मय्या,
खेती हर -हर किसान की,
शान हुआ करती थी,
तब ये ही गय्या मय्या,
खाने को गोरस,
खाद को गोबर,
और जोतने को बछड़े,
दिया करती थी,
ये गय्या मय्या!
अब तो सूरत बदल गई है,
दूध की थैली घर घर मिलती
बछड़ों की अब जरुरत कहाँ बचती,
पावर विडर,पावर ट्रेलर,
और पावर टैक्टर ने,
किस्मत ही बदल दि इनकि,
अब तो यह सडक पर हि,
छुट्टा घुमा करती,
इधर उधर मुह मारा करती,
मार है खाति,
मारा भी करती,
बस ऐसे हीं बिचरति रहती,
दुर्घटनाओं में घायल होती,
सड़क पर है तडफति,
सड़क पर हि मरति ,!
यूं तो फिर भी इसकी जरुरत है पडती,
हमारे घरों के कर्मकांड में,
मृतक के अर्पण तर्पण में,
पृत्र पक्ष के गौ ग्रास में,
ग्रह नक्षत्रों के दोष दान में,
इसके अहमियत अब भि बाकी है,
ऐसे हि अवसर पर,
ये ढूंढि जाति है,
बस इतना ही काम ये आति है,
अब गौ माता कहाँ पालि जाति है!