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16 May 2023 · 1 min read

क्या आपने कभी सोचा है

क्या तुमने कभी सोचा है?

तुम्हारे आपसी मतभेद और तथाकथित मनमुटाव
उपजा रहें है भीषण और भयावह माहौल
इनके बीच पिस रहीं है सबकी और सबकी अपार संभावनाएं
काल बनकर ग्रस रहें हैं उन्माद और छल के राहू और केतू
मानवीय संवेदनाओं के लिए सब द्वार हैं बंद और बंद होते भारत और न जाने क्या क्या कर रहें हैं देश की अस्मिता का चीर हरण
जाति रंग भाषा सम्पद्राय के बादल कब छटेंगे कब होगी समरसता की वर्षा
क्या प्रकृति के कोप और सिद्धान्त से अभी हो बेखवर
विष पायी पीढ़ी को और कितना गरल पीना है
क्या तांडव झेल पाओगे देख पाओगे
शायद नहीं
क्यों बाज नहीं आते तिकडमी चालों और छद्म व्याख्यानों से
कितने चेहरे बदलते हो दिन भर में
लोगों की आस्था से मत करो खिलवाड़
विश्वास टूटने पर क्या होता है
शायद तुम्हे नहीं पता कि आदमी कहीं का और कहीं का नहीं रहता।।

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