कौशल पढ़ते लिखते रहते
जलने वाले जलते रहते।
बढ़ने वाले बढ़ते रहते।।
कुत्ते भौक रहे हो पग-पग।
हाथी आगे चलते रहते।।
बाधाएं हैं आती-जाती।
उठने वाले उठते रहते।।
समझदार लोगों के चिंतन।
कार्य रूप में सजते रहते।।
मेहनत कश चुप नहीं बैठते।
कर्म हमेशा करते रहते।।
करने वाले कर लेते हैं।
हाथ आलसी मलते रहते।।
नकारात्मक रो-रोकर के।
खुद को कैसे छलते रहते।।
समझदार सब तर्क समझते।
रट्टू तोता रटते रहते।।
बिना वजन के लोग निठल्ले।
यूँ ही खूब उछलते रहते।
कामचोर बस बना बहाने।
काम न करने बचते रहते।।
भरी गगरिया चुपके चलती।
अधजल अधिक छलकते रहते।।
हिम्मत वाले हार न माने।।
खुश दिल हरदम हँसते रहते।।
बादल जो बिन वर्षा वाले
गरजें खूब घुमड़ते रहते।।
शेख चिल्लियों के सब सपने।
बिना लक्ष्य के ढहते रहते।।
साधक जैसी कोशिश करते।
मंजिल लक्ष्य पहुँचते रहते।।
डर-डर के जीना भी कैसा ?
सदा साहसी कहते रहते।।
शिक्षा में सब शक्ति समाहित।
‘कौशल’ पढ़ते लिखते रहते।।
@कौशलेन्द्र सिंह लोधी ‘कौशल’