कौवे का ग्रास
श्राद्ध के दिन दादी को छत पर ग्रास रखते देख नन्हीं आख्या ने उत्सुकता से पूछा- “दादी कौआ को खाना क्यों खिलाते हैं ?” दादी मंद-मंद मुस्काती हुई कहने लगी- “बेटी ! कौआ हम पर बहुत बड़ा उपकार करता है, वह पूरे वर्ष पीपल, बबूल, बरगद आदि बड़े-बड़े वृक्षों पर बैठता है और उनके बीजों को निगलकर उन्हें अंकुरण योग्य बनाता है , फिर उन्हें बीट के द्वारा भूमि पर यहाँ-वहाँ गिरा देता है जिससे मिट्टी पर गिरा अंकुरित बीज स्वतः ही उगने लगता है और बड़ा होकर हरा-भरा वृक्ष बन जाता है जिससे हमें प्राणवायु मिलती है। इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने दूर- दृष्टि से चिंतन करते हुए साल भर में एक बार श्राद्ध के दिनों में कौओं को ग्रास रखने की प्रथा बनाई जिससे इन पक्षियों का संरक्षण हो, वायुमंडल में सर्वत्र हरियाली रहे एवं मानव जीवन सुरक्षित रहे।”
दादी से अपने प्रश्न का उत्तर सुनकर आख्या का चेहरा खिल उठा उसे कौओं को खिलाने का महत्व समझ आ गया और वह अपने हाथ में दाना लेकर पक्षियों को बुलाने लगी।
जगदीश शर्मा सहज
३०/०९/२०२१
पितृपक्ष ।सांयकाल