कौन हो तुम
कौन हो तुम…
चले आते हो झांकने
मेरे मन आँगन में ज़मी
यादों को.
चले आते हो उद्वेलित करने
मेरे अंतर्द्वंद को,
और मेरे विगत को मेरे
सामने खड़ा कर,
फिर, मुझे छोड जाते हो
मेरी तन्हाइयों और
मेरी मायूसियों में
भटकता छोडकर…
और तन्हा, और अकेला!!!!
हिमांशु Kulshrestha