कौन हुँ मैं?
इधर-उधर की बातें करता
खाने से कभी ना मन भरता
बकर-बकर दिन भर करके
रात को सपनो मे रहता
पता नहीं क्या रूप लिया हुँ
थोड़ी सी सोच-समझ लिया हुँ
तारण तो कहते है सब पर
कौन हुँ मैं?, कौन हुँ मैं?।
बचपन मे शरारत करता था
तभी मुश्किल मे पड़ता था
थोड़ा सीधा बच्चा माना जाता पर
गुस्सा अपार भरा रहता था
पढ़ने मे तो ठीक-ठाक पर
रोना नही कभी सीखा
इज्जत-सम्मान की बात आई तो
नारी को देवी सा समझा
तारण तो कहते है सब पर
कौन हुँ मैं?, कौन हुँ मैं?
सफल तो ना हर बार हुआ
असफल राह पर खूब चला
मन की मानकर कभी-कभी
चोट कई हैं तन को दिया
किताब कई पढ़ ली हैं अब
जीवन को पढ़ना सीख रहा
लोगो का क्या हैं लोग कहेंगे
जरा सा भी ना सोच कहेंगे
बात सही सब ही करते हैं
गलत बात ना पसंद करे कोई
तारण तो कहते हैं सब पर
कौन हुँ मै?, कौन हुँ मैं?
एक बार दोस्ती की खातिर
एक लड़की को बोल दिया
लेकिन उसने कुछ तो कहकर
प्यार भरा ना बोल दिया
टूटा जाल तब समझ मे आया
ना क्यों बोली वो जान पड़ा
मान गयी हैं सोच रहे पर
प्रेमी होने का दावा किया
फिर छोड़ के बातें प्यार भरी
वापस खुद मे ही आया
तारण तो कहते हैं सब पर
कौन हुँ मैं?, कौन हुँ मैं?
दो छात्र को पढ़ा रहा था
उसी से समाज को हरा रहा था
सोचा की कई छात्र पढ़ाने
तभी महान शिक्षक बन जाने
लेकिन शिक्षक का तो पता नही
पर एक खडूस तो बन ही गया
परेशान बच्ची को करता
भूत ,मुसीबत उसे कहता
रुठ गयी हैं, हार गयी हैं
बच्ची रोने को मान गयी हैं
पर क्या उसको विश्वास दिला दू
जीवन जन्नत सा उसका सजा दू
कहते तो तारण हैं सब पर
कौन हुँ मैं?, कौन हुँ मैं?
नौकर वाला सब काम किया हैं
जरा दोष ना किसी को दिया हैं
दोषी मानकर खुद को ही
हर सजा मैं जी ही रहा हुँ
हँसना तो अब दूर की बात है
लाश बराबर गुम-शुम सा हुँ
एक बड़ा भाई था अपना
पता नही क्यों उनसे लड़ा
बात भी बंद अब साथ भी बंद
दुश्मन उनको खुद का मान तब
बात गलत उनसे ही सुना
सोचता हुँ मिल लूं जाकर अब
पर लगता हैं अब देर हुई
कहते तो तारण हैं सब पर
कौन हुँ मैं?, कौन हुँ मैं?