कौन था
आज रविवार का दिन था जिसके परिणामस्वरूप मेरी स्कूल की छुट्टी थी । आज मै भी मम्मी और दादी से जिद करने लगा कि मैं भी दूसरे बच्चो की तरह माथे पर लकड़ी का गट्ठा रखकर बाजार में लकड़ियाँ बेचने जाऊंगा । जिससे मैं टाई और जूते मोजे खरीद सकू । हमारे गांव में अन्य महिलाएं और पुरुष भी रविवार के दिन माथे पर लकड़ी का गट्ठा रखकर बाजार जाते है जिससे घर के लिए आवश्यक सामग्रियां जैसे राशन इत्यादि की खरीदी कर सके ।
मैं पहली बार ही जा रहा था । इसलिए मम्मी ने मेरे हिसाब से छोटा ही लकड़ी का गट्ठा बांध दिया और मेरे सिर पर रख दिया । उत्सुकता वश मैं सबसे आगे था । मेरे पीछे – पीछे मम्मी दादी और गांव के अन्य लोग भी आ रहे थे । मैं तेजी से अपनी धुन में चला जा रहा था ।
जैसे ही मैं गांव के काकड़ के बाहर पहुँचा । वहां पर स्थित एक छोटे से नाले से मुझे यकायक ही कुछ बच्चो के रोने की किलकारिया सुनाई दी । पहली बार तो मुझे लगा कि ये मेरा भ्रम है । परंतु आवाज बंद होने के बाद दोबारा आरम्भ हुआ तो मुझे यकीन हो गया कि ये जो मैं सुन रहा हूँ । ये मेरा भ्रम नही बल्कि वास्तविकता है । मैं बहुत सहम गया, मेरे कदम वही पर रुक गए, डर के मारे पूरा शरीर थरथराने लगा । चेहरा पसीने से सन गया ।
मुझे इस तरह खड़े हुए देखकर मेरे पीछे से आ रही मम्मी और दादी ने इस तरह खड़े रहने का कारण पूछा । परंतु मुँह से शब्द ही नही फूट रहे थे । वहाँ से आगे चलकर मैंने उन्हें सब वाकया सुना दिया । पर मुझे समझा बुझाने के लिए मम्मी ने कहा कि “कुछ नही था बेटा कल रात तूने शायद डरावनी फ़िल्म देखी थी होगी तो उसी फ़िल्म का कोई सीन तुम्हारे दिमाग मे चल रहा होगा” । मम्मी को भी मैंने हाँ कह दिया शायद यही बात होगी । असल मे तो मैंने कोई फ़िल्म ही नही देखी थी ।
अभी तक मुझे इस सवाल का जवाब नही मिल रहा कि वो “कौन था” अथवा क्या था ?