कौन उजाला लाएगा
वतन को रिश्वतों के रिवाज़ में जकड़ बैठे है,
कैसे ज़ाहिल लोग कुर्सियां पकड़ बैठे है।
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इस देश का ईमान बेईमान के हाथो में है,
हर इक काम नाकाम के हाथों में है।
कौन उजाला लाएगा ‘दवे’ तेरे प्यारे वतन में,
बेसहारा है सूरज, शाम के हाथों में है।
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