कौआ बनें गिलहरी नहीं
सम्भवतया हम सभी जानते हैं कि सड़क दुर्घटना में सबसे ज्यादा जान गिलहरी की जाती है।
वाहन चलाते समय अचानक गिलहरी भाग कर सड़क के बीच में आ जाती है,हम गति पर होते है,हमें लगता है कि वह सड़क के दूसरी तरफ निकल जाएगी !
अचानक बीच सड़क पर वह गिलहरीरुक जाती है,और कन्फ्यूज में थोडा इधर -उधर देखती है और वापस पीछे की तरफ दौड़ लगा देती है, परिणाम……गाडी का टायर उसके ऊपर से निकल जाता है …………..
बेचारी गिलहरी
वहीं कौआ या कौओं का झुण्ड बीच सड़क पर कुछ खा रहा होता है ,किसी भी गाडी के आने के पहले वह या सब तुरंत वहां से उड़ जाते हैं! गिलहरी अनिर्णय उहापोह गलत निर्णय की परिचायक है !
वह सही समय पर सही और तेजी से कोई निर्णय नहीं ले पाती है , इसीलिए अधिकतर अपनी जान से हाथ धो बैठती है !
वहीँ कौआ तुरंत ,सटीक और सही समय पर सही निर्णय लेता है और सफल रहता है ……साथ ही जिन्दा भी !
हम भी अधिकतर जिंदगी में गिलहरी की तरह कन्फ्यूज ही रहते हैं ,कोई सही और सटीक निर्णय ले ही नहीं पाते ,है ना ?
जिंदगी में क्या बनना है से लेकर आज कौनसी शर्ट पहननी है ? हम यह ही निर्णय नहीं कर पाते !
और इसी कन्फ्यूजन दुविधा में जिंदगी जाया हो जाती है !
इस अनिर्णय की स्थिति में भले ही गिलहरी की तरह हमारी जान नहीं जाती लेकिन जान जितना ही कीमती समय चला जाता है ,सदा के लिए* !
तो क्यों नहीं हम कौआ बनें……निर्णय लेने में! जो भी करना है पहले थोडा सोचें और फिर तुरंत करें!
एक राज की बात ,हम अधिकतर निर्णय इसीलिए नहीं ले पाते हमें लगता है कहीं यह निर्णय गलत न हो* जाए ,फिर पता नहीं लोग क्या कहेंगे!
इसीलिए हम अधिकतर निर्णय की घडी को टालते रहते हैं ,कोई निर्णय लेने से बचते रहते हैं ! सही है ना….
लेकिन निर्णय तो लेने ही पड़ते हैं ! और जब तक हम कोई निर्णय नहीं लेंगे ,तब तक हमें कैसे मालूम होगा कि यह निर्णय सही है या गलत?
कहीं सड़क पर हमसे कोई एक्नसीडेंट हीं हो जाए इस डर से हम अपनी गाडी को गैरेज से बाहर ही नहीं निकालते हैं और वो बेचारी वहीं गैरेज में खड़ी-खड़ी खराब हो जाती है, नाकारा हो जाती है !
निर्णय नहीं लेने में शत प्रतिशत सम्भावना है कि हम जो चाह रहे हैं। वह हमें हासिल नहीं होगा,कभी नहीं ! लेकिन ….कोई भी निर्णय लेने में आधी सम्भावना जरुर है कि हम जो चाह रहे हैं वह हमें हासिल हो ही जाएगा !
हम दो राहों में से कोई एक चुनकर चलना तो शुरू करें ! यदि सही राह पर हैं तो अपनी मंजिल को पा ही लेंगे ! लेकिन अगर गलत राह चुन ली है तो कोई बात नहीं …..वापस लौट आएंगे दूसरी तरफ चलने के लिए !
क्या बिगड़ता है ,थोडा सा समय ही तो ज्यादा जाया (waste) होता है !
लेकिन यह उस समय की मात्रा से कहीं कम है जो हम निर्णय न लेकर दोराहे पर ही खड़े रहते हैं यह सोचते हुए ,कहाँ जाऊं ,कहाँ न जाऊं है ना ?
मैंने कहीं पढ़ा था “कभी निर्णय न लेने से कहीं अच्छा है गलत निर्णय लेना!”
इसमें हमें एक तसल्ली तो रहती है कि मैंने निर्णय तो लिया ,चाहे गलत ही सही यह आदत (निर्णय लेने की) हमारे आत्म विश्वास को बढाती भी है ! अन्यथा जीवन भर पछतावा ही रह जाता है कि काश ! मैंने जीवन में कोई निर्णय लिया होता! और यह पछतावा उस गलत निर्णय के पछतावे से कहीं ज्यादा गहरा और जीवन के लिए घातक होता है !
और दूसरी बात , आज जो इंसान गलत निर्णय ले रहा है वह उस निर्णय से सबक और अनुभव लेकर कल को सही निर्णय भी तो ले सकता है ,और लेता भी है ! बस जरुरत है निर्णय लेने की !
तो शांति से विचार करें सारे पहलुओं पर नजर डालें और ऊपर वाले को साक्षी मान निर्णय लें!
आशा है कि, *ऊपर वाले की साक्षी में लिए गए निर्णय सही ही होंगे! है न!